दयार-ए-दिल्ली : मुसाफिरों की दिलरुबा

ऐश्वर्या ठाकुर आर्किटेक्ट एवं ब्लॉगर मिट्टी, मीटर और मेट्रो के जिक्र से आगे निकलने पर दिल्ली अपना हिजाब खोलती है और शाहजहानाबाद की गलियों से होकर शाहदरा की बस्तियों तक फैली अपनी रियासत बड़ी ठाठ से हर आनेवाले को दिखाती है. यहां

एक उदास कविता!

ऐश्वर्या ठाकुर आर्किटेक्ट एवं ब्लॉगर पीर-पंजाल की तलहटी में बसी वादी-ए-कश्मीर पर उदासी का एक स्याह कुहासा तारी है. कोई नहीं बताता कि वह कौन-सा सियासी जलजला था या जिन्नात का कौन-सा हुकूमती साया था, जिसने वादी के सीधे-सादे

पंजाब के पदचिह्नों पर जख्मों की निशानियां

ऐश्वर्या ठाकुर आर्किटेक्ट एवं ब्लॉगर तारीख के टोके (हिस्से) में पंजाब बार-बार कटा, पर अपना हरियाला-बाना झाड़कर हर बार फिर जूझने को तैयार मिला. दरअसल, 1966 में पंजाब से सिर्फ सूबे अलग हुए थे, मगर पंजाबी-सभ्याचार के टुकड़े तो 1947 भी न

विरासतनामा: हिमाचल प्रदेश- दूसरी परम्परा का गढ़

"..हिंदी साहित्य के कद्दावर आलोचक नामवर सिंह ने साहित्य की जिस 'दूसरी परम्परा' का ज़िक्र किया था, उसी तरह की क्रांतिकारी परम्परा, जो मुख्यधारा से अलग राह पर चलती है, हिमाचल प्रदेश की पहचान है। आज तक हिमाचल प्रदेश मुख्यधारा की आँधी के सामने अपनी वैकल्पिक परम्परा को सदियों से संजोकर रखे हुए है.. "

विरासतनामा: खोया हुआ देश तिब्बत और दरबदर तिब्बती

गेरूआ या लाल चोगा पहने हुए माला फेरते बौद्ध भिक्षुओं को शान्ति के प्रतीक के रूप में दुनिया भर में जाना जाता है पर अपनी सरजमीं से विस्थापित होने की टीस दिल में बसाए ये तिब्बती शरणार्थी भीतर ही भीतर वतनवापसी की उम्मीद में कोयले की तरह तप भी रहे हैं, जो सबको नहीं दिखता।

क्यों बेचारे हो गये बंजारे?

ऐश्वर्या ठाकुर आर्किटेक्ट एवं ब्लॉगर न पांव में सामाजिक रिवायतों की बेड़ियां और न सिर पर स्थायित्व की गठरी, बस एक लंबा रास्ता और साथ चलता कारवां; यही है बंजारों के स्वच्छंद जीवन का परिचय. गांवों, कस्बों, जिलों और सूबों की सरहदों

रूहानियत की छाप लिए हुए हैं सूफी दरगाहें

"सूफीवाद के सियासी विचारों को जाने बिना सूफी दरगाहों की वास्तुकला का विश्लेषण अधूरा होगा। ये सूफ़ी परिसर स्थानीय प्रभावों, सुल्तानों के कलात्मक झुकाव, संरक्षकों की संस्कृति और कारीगरों के कौशल की छाप लिए मिलते हैं.."

गडरिये: चरागाहों से लाचारी तक

Article published in August '2019 edition of Prerna Anshu magazine : "बेथलेहम से लेकर अमरनाथ तक, यीशु से लेकर कृष्ण तक, रांझे से लेकर ईसप की दंतकथाओं तक चरवाहों के किस्से-कहानियाँ हमेशा से ज़िंदा रहे हैं और रहेंगे।"

विरासतनामा: राजस्थान- सुनहरी रेत पर सजा सतरंगी ताना-बाना

"राजस्थान को समझने के लिए सुनहरी रेत पर बिखरे हुए इन अलग अलग सामाजिक धागों को एक सूत्र में जोड़कर देखने की ज़रूरत है क्योंकि रंगीलो राजस्थान में राजपूती केसरिया के साथ कालबेलिया का काला रंग भी शामिल है, मकराना के संगमरमर का सफ़ेद रंग भी शामिल है और रेतीले धोरों का सुनहरा रंग भी बराबर हिस्सेदार है.."

विरासतनामा: भीखम शाह दरगाह- सर्वधर्म सम्भाव की अभेद्य दीवारों के बीच टिमटिमाता एक चिराग़

यह दरगाह परिसर अपनेआप में 'सर्वधर्म सम्भाव' का सजीव नमूना है, जहां एक तरफ़ पीर भीखम शाह का आस्ताना है, तो दूसरे छोर पर राम मंदिर और गुरुद्वारा भी मौजूद है।

विरासतनामा: अपने-अपने सैंतालिस, चंडीगढ़ बसाने के लिए कुर्बान किए गए गांवों की टीस

"त्रासदी देखिये कि चंडीगढ़ शहर की उत्कृष्ट प्लानिंग के कसीदे तो हम सब सुनते रहते हैं लेकिन 50 से ज़्यादा गाँवों का भूमि अधिग्रहण और किसानों का विस्थापन चंडीगढ़ के इतिहास और प्रमुख आख्यानों का हिस्सा तक नहीं बन पाया है।"

विरासतनामा: काठ कथा-चंडीगढ़ चेयर का यात्रा वृत्तांत

यूं तो ज़्यादा बात चंडीगढ़ शहर की सड़कों और इमारतों की होती आई है लेकिन पिछले कुछ सालों में जॉनरे द्वारा डिज़ाइन की गई चंडीगढ़ कुर्सी (चंडीगढ़ चेयर) ने भी सुर्खियां बटोरी हैं अपने कबाड़ से धरोहर तक के लम्बे सफर के चलते।

विरासतनामा: 'धरोहरों के पहरेदार- जो गायब भी हैं, हाजिर भी'

तमाम संरक्षक संस्थाओं ने दुनियाभर में फैले धरोहरों के बचाव, रख रखाव और प्रचार के लिए खूब काम किया है लेकिन कई मौकों पर ऐसे संस्थान धरोहरों के बचाव में अक्षम भी साबित हुए हैं.

आम जन के लिए बावड़ी बनवाने वाली रानियाँ-राजकुमारियाँ

"हम कहते हैं कि सरस्वती धरती में समा गई, उसके पदचिन्ह ढूँढो लेकिन हमारी आँखों के सामने ओझल होते बावड़ियों के अस्तित्व से हम जानबूझकर अंजान बने हुए हैं। क्या हम अपनी बावड़ियों को मोहनजोदड़ो के तालाब की तरह विलुप्त होने के बाद ही खोजेंगे और सँजोएंगे?"

पहाड़: प्रेरणा का भूगोल

सदियों से पहाड़ों की ओट में जाकर पनाह लेने वाले साधू-संत, साहित्यकार, कलाकार और कारीगर प्रमाण हैं कि सत्य और रचनात्मकता का सोता कहीं पहाड़ों के गर्भ से ही निकलता है, जो हर किस्म की रूहानी और तख़्लीक़ी खुश्कसाली को अपनी मीठी बौछारों से तर कर सकता है।

विरासतनामा: कालका शिमला रेलमार्ग- अतीत और वर्तमान को जोड़ती कड़ी

"..यूनेस्को विश्व धरोहर में शुमार 'कालका-शिमला रेलवे' दुर्गम चढ़ाईयों पर चढ़ते-उतरते हाँफती ज़रूर है मगर सैलानियों की ऊर्जा से आज भी मुसलसल सफ़र जारी रखे हुए है.. "

विरासतनामा: विश्व युद्धों में भारतीय सैनिक- धूलि धूसरित धरोहर

विश्व युद्ध में शामिल होने वाले भारतीय सैनिकों में से ज़्यादातर ऐसे लड़ाके थे, जिन्होंने शायद कभी अपने गांव की दहलीज़ भी नहीं लांघी थी लेकिन नियति जिन्हें सात समन्दर पार लड़ने जूझने ले आई थी।

विरासतनामा: अल्लाह बिस्मिल्लाह तेरी जुगनी

इस उपमहाद्वीप में जहां इब्न बतूता, बाबा नानक और राहुल सांकृत्यायन जैसे पुरुष यात्रियों के वृतांत सराहे गए हों, वहां पितृसत्ता की लक्ष्मण-रेखा लांघ कर दुनिया घूमने वाली जुगनी के गीत गाया जाना भी किसी विद्रोह से कम नहीं है।
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